अयोध्या जिसका ज़िक्र वाल्मीकि अपने रामायण में करते हैं, जो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की जन्मभूमि है। उसी अयोध्या में जहाँ के राजा रहे श्री राम ने कभी अश्वमेध यज्ञ किया था। उस देश में जहाँ सिया राम के वनवास से लौटने के ख़ुशी में आज भी दिवाली मनाई जाती है। उस भारत के उस अयोध्या में भगवान् श्री राम को इतने वर्ष टेंट में रखा जाता है और हम प्रश्न नहीं पूछते|
ये प्रश्न सत्ता में इतने साल तक रहे राजनितिक पार्टी से नहीं पूछनी चाहिए क्या? क्या वे कभी ऐसी बहुमत में नहीं थे? ऐसी क्या विडम्बना थी की इतने वर्षों तक उन्होने कभी श्री राम की ख़बर ना ली| क्या बस ये एक पार्टी की जिम्मेदारी थी की वह श्री राम को अपना राजनितिक मुद्दा बनाये अपने उत्थान का इंतज़ार करती रहे?
वर्ष 2014 से पहले देश के किसी नागरिक ने ये सपने में भी नहीं सोचा होगा कि आने वाले दस वर्षो के भीतर ऐसा भी दिन आएगा जब श्री राम उस टेंट से निकल के उस महल में जाएंगे जहाँ उन्हें वर्षो पहले चले जाना चाहिए था। तो एक चाय वाला जिसने इस दिन के सपने तो सजोये होंगे, पर 2014 से पहले कभी अपने जीवन काल में ये नहीं सोचा होगा कि उसी के शासन में एक दिन ऐसा आएगा जब श्री राम का ये वनवास भी ख़त्म हो जाएगा।
ये तो गोरखनाथ मंदिर के उस संत ने भी नहीं सोचा होगा जो की देश के सबसे ज़्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य का मुख्यमंत्री बनता है वह भी अकल्पनीय बहुमत से और एक दिन उसे भगवन श्री राम के इस वनवास को ख़त्म करने में अपना योगदान देने का मौका मिलता है।
22 जनवरी को देश के प्रधानमंत्री जब अयोध्या में श्री राम के भव्य स्वागत समारोह में सम्मलित होंगे तो सारे देश का ध्यान उसी तरफ़ होगा की न जाने कोई ऐसा पल छूट न जाए जिसकी कल्पना हमने 500 सालो तक की है।
यइ समारोह ऐसा हो जैसे एक बुरे काल के अंत की और एक नए काल की शुरुआत की और उस पल के साक्षी बनेंगे हमलोग, आप भी और हम भी और आने वाली पीढ़ी को इस दिन के बारे में बताएँगे। हाँ उस दिन की जब मर्यादा पुरुषोत्तम सिया राम वनवास से अपने घर को लौटेंगे।